
कितना कठिन है
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कितना कठिन हे कहना ,
की प्यार हे ....
आसान भी नहीं होता स्वीकारना
तुम्हारी आँखों के ,
दुधिया उजास में जब पढ़ती हू ,
तुम्हारे मन के स्वप्निल शब्द ,
सच मानो ..
खुद को खो देने का अहसास होता है
मौन द्रष्टि ,
कितने सवाल तलब करती हे ..
पर चाह कर भी नहीं होता ,
अधरों पर स्फुटन ..
जेसे शब्दों पर
खींच गई हो कोई रेखा ...
यह भी तो सच हे मगर ,
जब तुम नहीं होते हो पास
खुद से खूब बतियाते हे शब्द ..
जाने क्यों मुमकिन सा नहीं लगता
यह समझ पाना
"ढाई आखर " कहना
जबां को भारी क्यों लगता हे ..
जबकि उन्हें सुन कर मन
कितना हल्का हो जाता है ...!!
प्रवेश सोनी —