Saturday, April 28, 2012


शख्स
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जिस्म की दीवार मै
कैद शख्स ,
पत्थर सा.....
जन्मता है पीड़ा के गर्भ से
कहता नहीं ,
सुनता है ,वो जो अनसुना है
हैरान ,....खोया खोया सा
सोचता है ,
कोई तो तलाशता होगा उसे ...
किसी मन का
अटका हुआ
ख्याल बन .....
पथरीले मौन में
क्यों हो जाता है
असहनीय शोर ....!
दो बूंद आँख का पानी ,
जड़ता को नमी देकर
उष्मित कर देता है
अहसासों को ....
नीरव से महालय मै
हलाहल पिए कंठ पर हो
जाता अभिषेक
दुग्ध ,और गंगाजल से
शीतल शीतल ...!!!

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