Saturday, June 23, 2012

स्मृतियों के बीहड़ मै ..

सपनों के पीछे दोड़ते हुए ... 

चू- चूहा जाते है कदम
लहू से ...


मन की सतह पर
उभर आता है ,

एक और जख्म ..

बहने को नहीं होती कोई नीली नसे 

भीतर ही भीतर सड़ता रहता है
जहरीला मवाद ....

मरता नहीं फिर भी स्वप्न ..


हाँ.. तेरती रहती है परछाइया
आँखों की सतह पर ,

थकन ओढ़ कर
सो जाता है सपना
सोच कर ... 

कोई सुबह आकर
जगायेगी जरुर .....!


प्रवेश सोनी

Friday, June 8, 2012

सुरमयी सांझ ने समेटा
रौशनी का कारोबार
अपने आँचल मै .....

रात ने बिछा दी है चादर
आसमाँ पर सितारों की ..

हाँ ...आँखों को इन्तजार है
जीवन के सपने का ,....

तुमने ही तो कहा था
सपनों मै ही तो जिया जाता है
सच्चा जीवन ..
और मै सपने को जीने के लिए
हर सांझ को रात में समेटती रही ...!!

प्रवेश सोनी