Tuesday, July 20, 2010
ओरत
अतीत के पन्नों में झाँका
तो एक नादान ,अनजान
चंचल ,चपल ,बहकी मृगया सी
कुलाचे भारती हुई
नदी किनारे सीपीया बिनती हुई
भविष्य से बेखबर ,
वर्तमान में निश्चिन्त
अपने में ही जीती सी
अबोध सी कली-
कोन कही में शायद !!
वर्तमान की चोखट पर खडी
एक बेबस छाया ,
घर में बस एक कोना आया ,
दमित विचारों की मकड़ी
झुकी गर्दन ,कभी थी अकड़ी
सामाजिक बंधनों में शिथिल
उन्मुक्त गगन को निहारती
,स्वछंद विचरण की टूटी हुई आशा
भूत के न लोटते पल
वर्तमान के शोषित क्षण
भविष्य की चिंताओ में
स्वम को भूली सी
ओरो के लिए जीती
एक बेबस ओरत
कोन शायद में
हांहाँ में ही तो !!!!!
प्रवेश सोनी
Thursday, July 15, 2010
Wednesday, July 7, 2010
आशा के उन्मुक्त शिखर पर
नेह मेघ बन छाओ
अनुबंधित कर दो
विचलित मन को
अनुराग मेह बरसाओ...
व्यथित तपित तन को
नयन बयार से सहलाओ ...
गुन -गुन गुंजित होंटो से
शब्द मधुरस टपकाओ ...
द्वार खड़ी हे
वादों के पतझड़ में
मिलन की आस तुमारी
विश्वास का मदुमास लिए
प्रियतम अब तो आजाओ ..
मन बेरागी न हो जाये ,
तन योवन न ढल जाये
अरमा चिता पर ...
सोये पहले
मधुमित तुम आजाओ
सहरा से तपते तन पर
नेह मेघ बन छाहो...
प्रवेश सोनी
Thursday, July 1, 2010
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