Wednesday, July 7, 2010


आशा के उन्मुक्त शिखर पर
नेह मेघ बन छाओ
अनुबंधित कर दो
विचलित मन को
अनुराग मेह बरसाओ...
व्यथित तपित तन को
नयन बयार से सहलाओ ...
गुन -गुन गुंजित होंटो से
शब्द मधुरस टपकाओ ...
द्वार खड़ी हे
वादों के पतझड़ में
मिलन की आस तुमारी
विश्वास का मदुमास लिए
प्रियतम अब तो आजाओ ..
मन बेरागी न हो जाये ,
तन योवन न ढल जाये
अरमा चिता पर ...
सोये पहले
मधुमित तुम आजाओ
सहरा से तपते तन पर
नेह मेघ बन छाहो...

प्रवेश सोनी

5 comments:

  1. PARVESH JI,
    AAP KE BLOG PAR BHRAMAN KAR AANAND AAYA !
    SHANDAR OR JANDAR BLOG !
    BAHUT ACHHI KAVITAYEN !
    PAINTING BHI BAHUT ACHHI !
    RANG_REKHA OR SHABDON KI DAMDAR JUGALBANDI !
    BADHAI HO !

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  2. man ko chhu dene waali kavita likhte hai ...
    man bada prafullit hua

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  3. आपका ह्रदय से आभार ........होसला बढ़ाते रहिये गा

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  4. मुझे डॉ. सागर आज़मी की पंक्तियाँ यद् आती हैं-
    "शाम हुई सन्नाटे जागे सागर अब घर लौट चलो,
    आशाओं के द्वार पे कोई बैठा होगा दीप जलाये".
    उमेश्वर दत्त"निशीथ"
    www.nisheethkavi.blogspot.com

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