Saturday, October 29, 2011


सोचा आज,
तनहाई लिखू ..
कुछ महक हे ,
खुशबु है ,
लम्हों का
सीलापन भी हे ..
मगर शोर हे बहुत ,
गुम है शब्द जिसमे ,
प्रस्तर से चोट देते ,
सन्नाटे ....
गूंजती हे
अधूरी ख्वाहिशो की चीखे ..
फिर टूट जाती हे तनहाई
टप-टप गिरती
आंसुओ
की बूंदों से .....
और कलम लिख देती हे
कागज पर सिर्फ ,
तेरा नाम ....!!!!


प्रवेश सोनी

Sunday, October 16, 2011


एक स्त्री
जब जन्म देती हे
स्त्री बीज को ,
नहीं बजती है थाली ..
नहीं बटते हे पताशे ...
सोहर के गीत
घुट जाते हे गले में ...
मुँह मोड लेती हे बधाईया ,
द्वार से ही ....

उपालंभ ,उपेक्षा के पानी से
सिंचित हो लेता हे आकार
वह बीज ,एक स्त्री का
तब दान कर दिया जाता हे
एक पुरुष के हाथ ..
एक पुरुष बीज जनने के लिए

सफल हो जाती हे तो
पाती हे उपहार
एक कुशल दास की भाति...
जो करता हे
प्रत्येक कार्य निपुणता और सजगता से
मालिक की इच्छानुसार ..

आज्ञा की अवज्ञा का नहीं हे साहस उसे ...
असफलता की गति
होती बस प्रताडना ...

कोनसा बीज ले जन्म
हे यह प्रकृति के वश ....
ना जाने क्यों दोषी ठहराई जाती
सिर्फ और सिर्फ एक स्त्री ..

स्वयं को ढोती हुई जीती हे
साँसों के त्राण तक
जला दी जाती हे
कभी साँसों के साथ ही
या खुद का बोझ ढोते ढोते ,
टूटती साँसों के बाद

पा ही जाती हे मोक्ष आखिर
धुआँ धुँआ जिंदगी
मौत का धुआँ होने के बाद ..
होती यही परिणति
एक स्त्री की ,
स्त्री बीज जनने के बाद ...!!!