Monday, July 30, 2012


अजनबी .....
यह गीत जो गुनगुना रही हूँ मै ,
उसकी लय और ताल ,
तेरी ही तो पलकों की थिरकन से आई हैं ...
मेरी और जो उठकर ,
सिखा गई आरोह – अवरोह ....

कितने रंगीन वसन ओढ़ बैठी है
यह जिंदगी ...
और इठला रही है ..
ये रंग तेरी ही तो हँसी ने भरे हैं...
बड़े पक्के रंग हैं यह ,
और भी चटक जाते है दुःख की धूप मै ..

ये संदली सपने ,
तुझसे ही तो आँखों मै आ बसे हैं मेरे
खड़े हो तुम उम्मीद की जमीं पर
चाँद तारे लिए हुए ...

अजनबी..
केसे कहू तुम्हे
बिन तेरे तो साँसे मेरी ,
अजनबी लगने लगी है अब मुझे .....!!

प्रवेश सोनी
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Sunday, July 22, 2012


आशा के उन्मुक्त शिखर पर
नेह मेघ बन छाओ ....
अनुबंधित कर दो
विचलित मन को
अनुराग मेह बरसाओ...
व्यथित तपित तन को
नयन बयार से सहलाओ ...
गुन -गुन गुंजित होंटो से
शब्द मधुरस टपकाओ ...
द्वार खड़ी हे
वादों के पतझड़ में
मिलन की आस तुम्हारी
विश्वास का मदुमास लिए
प्रियतम अब तो आजाओ ..
मन बैरागी न हो जाये ,
तन यौवन  न ढल जाये
अरमा चिता पर ,
सोये पहले
मधुमीत तुम आजाओ
सहरा से तपते तन पर
नेह मेघ बन छा जाओ ....!!