Sunday, July 22, 2012


आशा के उन्मुक्त शिखर पर
नेह मेघ बन छाओ ....
अनुबंधित कर दो
विचलित मन को
अनुराग मेह बरसाओ...
व्यथित तपित तन को
नयन बयार से सहलाओ ...
गुन -गुन गुंजित होंटो से
शब्द मधुरस टपकाओ ...
द्वार खड़ी हे
वादों के पतझड़ में
मिलन की आस तुम्हारी
विश्वास का मदुमास लिए
प्रियतम अब तो आजाओ ..
मन बैरागी न हो जाये ,
तन यौवन  न ढल जाये
अरमा चिता पर ,
सोये पहले
मधुमीत तुम आजाओ
सहरा से तपते तन पर
नेह मेघ बन छा जाओ ....!!
 

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