आशा के
उन्मुक्त शिखर पर
नेह मेघ बन छाओ ....
अनुबंधित कर दो
विचलित मन को
अनुराग मेह बरसाओ...
व्यथित तपित तन को
नयन बयार से सहलाओ ...
गुन -गुन गुंजित होंटो से
शब्द मधुरस टपकाओ ...
द्वार खड़ी हे
वादों के पतझड़ में
मिलन की आस तुम्हारी
विश्वास का मदुमास लिए
प्रियतम अब तो आजाओ ..
मन बैरागी न हो जाये ,
तन यौवन न ढल जाये
अरमा चिता पर ,
सोये पहले
नेह मेघ बन छाओ ....
अनुबंधित कर दो
विचलित मन को
अनुराग मेह बरसाओ...
व्यथित तपित तन को
नयन बयार से सहलाओ ...
गुन -गुन गुंजित होंटो से
शब्द मधुरस टपकाओ ...
द्वार खड़ी हे
वादों के पतझड़ में
मिलन की आस तुम्हारी
विश्वास का मदुमास लिए
प्रियतम अब तो आजाओ ..
मन बैरागी न हो जाये ,
तन यौवन न ढल जाये
अरमा चिता पर ,
सोये पहले
मधुमीत तुम
आजाओ
सहरा से तपते तन पर
नेह मेघ बन छा जाओ ....!!
सहरा से तपते तन पर
नेह मेघ बन छा जाओ ....!!
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