Saturday, April 30, 2011


नदी हू में
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चीर कर दृढ पर्वत को
प्रवाहित हू में .....
बहना ही हे वृति मेरी
निरंतर ,..

प्रीत का प्रपात बन
मचलता नीर मेरा ..
इत उत् छलकता
सपनो का सोता ..
वात्सल्य से लबालब
बूंद –बूंद मेरी ..
तृप्त होती हर ओंक

बहना हे अनवरत
बंधन
सुख नहीं देते
उथला देते जल मेरा ,
निरा वेग से
उच्छल उर्मिया
सहलाती तट को ,
अलोकिक समर्पण साध
महा प्रयाण
उत्कल उदधि में
निश्चित लक्ष्य पथ ..
ना बाँधो मुझे ,बहने दो
नदी हू में ,
रागरत बहने दो ...!!!


प्रवेश सोनी

Friday, April 22, 2011


अनुगूँज
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खामोशियो के कोलाहल में
आकंठ डूबे हे ...

कहना भी हे
और सुनना भी ....

पर
चाहत की अनुगूँज
लोट आती हे
दूर बहुत दूर
अहं के पहाडों से टकरा कर ..

गहरी खाइयों में
समा जाती हे ...

अनिश्चित दिशाओ में
भटकता मन
दीन मलिन सा ..

चोटिल हो
रिसता पल – पल.....

सुन लो मेरी
ख़ामोशी की आवाजे ..

गुम न हो जाऊ
इस शोर में ...
टकरा कर पत्थर से
पत्थर ना हो जाऊ कही ...

प्रवेश सोनी