Saturday, July 30, 2011


रिश्ता

कुछ कच्चे ,कुछ पक्के
कुछ झूठे ,कुछ सच्चे ...
रिश्तों के यह
सतरंगी धागे ...
मन का जुलाहा बुनता
सारी टूटी गांठे छुपाकर ....
बुना एक सुख स्वप्नों का बाना
शोख रंग से गूँथ –गूँथ कर ,
महमहाता रिश्ता सुहाना ,

जिसने गीतों को राग दिया ,
मीरा की वीणा,पायल का स्वरताल दिया
प्रीति –प्राण से मन वृन्दावन ,
साँसों ने पल –पल
अमृत पान किया ..
स्वर्ग सदन मन का आँगन
उड़ी उमंगें पर फेलाकर

विश्वासों ने नूतन आयाम लिया
चिर निष्ठां के सेतु से
सदियों के सुख को पल में
मन से मन को बाँध लिया ...

प्रवेश सोनी

2 comments:

  1. apki yeh sundar rachna man ko chhune men samarth

    rishto ke yeh
    satrangi dhage
    man ka julaaha bunta.

    bahut badia rachna hai, badhai.

    ashok andre

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  2. अशोक जी बहुत बहुत आभार ...

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