Wednesday, February 11, 2015


जिंदगी तुझसे मिलु ..
दो बात करू ,
अपनी कहूँ ....
तेरी सुनु ,
तेरे रंगों से मुलाकात करू ..
...........!!!
अजीब वहशत हे ज़माने की ..
दो पल भी ,
तनहा मुझे
छोडती नहीं ..!

प्रवेश सोनी
चुप रहना आदत नहीं थी ...
बचाए थे शब्द ,
लौटा दूंगी प्रेम का ब्याज जोड़ कर
तुम्हारे उलाहने पर
कभी तो कहोगे
“बहुत चुप –चुप रहती हो तुम “
ठीक उसी तरह
जब पहले मेरी आवाज सुनने की बचैनी में कहते थे तुम .....
सुन कर बरस जाते थे प्रीत के फूल मेरी बातों में ......
और तुम्हारे उलाहने सुनने को
अक्क्सर चुप हो जाया करती थी ...!!

पर अब तुम्हारे उलाहने ही चुप कर देते है

ब्याज जुड़ नहीं पाया ,
कोरी बचत कब तक चलती ...
बचे शब्द चुक गए चुप रहने में ..
अच्छा है
चुप्पी अब आदत बन गई
आदतो से निभाह हो जाती है

तुम्हारे उलाहने की धूप में
कभी छट जाये शायद
यह चुप रहने की आदत का कुहासा ....!!!

pravesh soni
एक ठहरा सा मौसम ..
सिसकती सी फिज़ा..
दिल का अक्स
डूब जाता है
यांदो के समंदर में ..

पुकार तो लू तुझे ...
राग के साज़ में ,
तू सुनने से मुकर जाए
तो ....
जीवन स्वर रूठ जाए ना कही ...!!


टूटती है ऊंगल ,दो ऊंगल,
बालिश्त ,दो बालिश्त .. 
टुकड़ा- टुकड़ा होकर
कटती है ,
मरती है रोज
नई मौत
औरत.... 


फिर उग आती है 
हरी भरी ...
रक्त बीज होती है औरत ...।
 
प्रवेश सोनी
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