Wednesday, February 11, 2015


टूटती है ऊंगल ,दो ऊंगल,
बालिश्त ,दो बालिश्त .. 
टुकड़ा- टुकड़ा होकर
कटती है ,
मरती है रोज
नई मौत
औरत.... 


फिर उग आती है 
हरी भरी ...
रक्त बीज होती है औरत ...।
 
प्रवेश सोनी
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