Thursday, October 18, 2012


रिश्ते
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रिश्ते ....
कितने सस्ते ...
निभ जाने कि खातिर ,
करने होते
कितने
महंगे समझौते .....

समझौते गर बन जाते रिश्ते .....
जीवन बीते फिर
कितने सस्ते ......!!


प्रवेश सोनी
 — 

देह यात्रा .....
अविराम ,
अवचेतन मन से हारी ....,
सम्पूर्णता कि राह मै ,
शून्यता

नेसर्गिक देह दीप मै ,..
नेह कि बाती जला ,
टपकता उजास ...
मन के स्याह से जीतने के लिए ..

अनवरत ,अविराम यात्रा ..!!

Saturday, August 4, 2012

 चाहू होना शून्य 
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स्मृतियों के पल ,
हवा पर सवार होकर ,
अपने पूरे वजूद से ..

खडका देते है मन की किवडिया..
समेट लाते है अनंत ब्रम्हाण्ड प्रेम का ..
अंतस में सजा देते है
ख्वाबों के शामियाने ,
तरंगित साँसो मै गूंजती है
स्वर्णिम शहनाई ..

एक छुअन ,
एक सिहरन ..,
अधरों पर थरथराती एक कहानी ,
मीरा की ह्रदय जोत ,
राधा की अटूट प्रीत ..
चातकी की आस ..
जन्म- जन्मो की साध ,
मनमीत मेरे ,
प्रीत मै तेरे ,
रचे सब गीत मेरे ..
दिव्य अलोकिक यादों की घड़ियाँ ,
अनंत कर देती
मुझको मुझमे ..
चाहू होना शून्य ,
विलीन होकर बस उनमे ...!!!



प्रवेश सोनी

Monday, July 30, 2012


अजनबी .....
यह गीत जो गुनगुना रही हूँ मै ,
उसकी लय और ताल ,
तेरी ही तो पलकों की थिरकन से आई हैं ...
मेरी और जो उठकर ,
सिखा गई आरोह – अवरोह ....

कितने रंगीन वसन ओढ़ बैठी है
यह जिंदगी ...
और इठला रही है ..
ये रंग तेरी ही तो हँसी ने भरे हैं...
बड़े पक्के रंग हैं यह ,
और भी चटक जाते है दुःख की धूप मै ..

ये संदली सपने ,
तुझसे ही तो आँखों मै आ बसे हैं मेरे
खड़े हो तुम उम्मीद की जमीं पर
चाँद तारे लिए हुए ...

अजनबी..
केसे कहू तुम्हे
बिन तेरे तो साँसे मेरी ,
अजनबी लगने लगी है अब मुझे .....!!

प्रवेश सोनी
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Sunday, July 22, 2012


आशा के उन्मुक्त शिखर पर
नेह मेघ बन छाओ ....
अनुबंधित कर दो
विचलित मन को
अनुराग मेह बरसाओ...
व्यथित तपित तन को
नयन बयार से सहलाओ ...
गुन -गुन गुंजित होंटो से
शब्द मधुरस टपकाओ ...
द्वार खड़ी हे
वादों के पतझड़ में
मिलन की आस तुम्हारी
विश्वास का मदुमास लिए
प्रियतम अब तो आजाओ ..
मन बैरागी न हो जाये ,
तन यौवन  न ढल जाये
अरमा चिता पर ,
सोये पहले
मधुमीत तुम आजाओ
सहरा से तपते तन पर
नेह मेघ बन छा जाओ ....!!
 

Saturday, June 23, 2012

स्मृतियों के बीहड़ मै ..

सपनों के पीछे दोड़ते हुए ... 

चू- चूहा जाते है कदम
लहू से ...


मन की सतह पर
उभर आता है ,

एक और जख्म ..

बहने को नहीं होती कोई नीली नसे 

भीतर ही भीतर सड़ता रहता है
जहरीला मवाद ....

मरता नहीं फिर भी स्वप्न ..


हाँ.. तेरती रहती है परछाइया
आँखों की सतह पर ,

थकन ओढ़ कर
सो जाता है सपना
सोच कर ... 

कोई सुबह आकर
जगायेगी जरुर .....!


प्रवेश सोनी

Friday, June 8, 2012

सुरमयी सांझ ने समेटा
रौशनी का कारोबार
अपने आँचल मै .....

रात ने बिछा दी है चादर
आसमाँ पर सितारों की ..

हाँ ...आँखों को इन्तजार है
जीवन के सपने का ,....

तुमने ही तो कहा था
सपनों मै ही तो जिया जाता है
सच्चा जीवन ..
और मै सपने को जीने के लिए
हर सांझ को रात में समेटती रही ...!!

प्रवेश सोनी

Tuesday, May 22, 2012



साँसों की महक से .
बहका तन ,,,
और सुध खो बैठी रात की रानी ,

छिटक कर डाल से ,
चहका हरसिंगार ...

पूरे चाँद का नशा था रात पर ,

जाग कर थिरकती रही ,
सात स्वरों के साथ ...

लुक छिप कर चोरी चोरी

सितारों मै भी हो रही ठिठोली ...

सारी कायनात नहाई हो

जैसे खुशबु में तेरी ....

हाँ ,तभी तो मेरे गूंगे अहसासों को

शब्द मिले ...

गिरवी जो रख दिए थे मैंने ...

तुम्हारे पास ,
नजरो की सौदेबाजी मै ....!!!



प्रवेश सोनी

Wednesday, May 16, 2012



कितने आवारा है यह तेरी सोच के बादल ..

वक्त -बेवक्त छा जाते हैं मन पर ,....

घुसपैठिए की तरह ,
विचारों में लगाते हैं  सेंध ....

सोचती हूँ ,
किसी संदूक में बंद कर
ताला जड दूँ  ....
पर कैसे  ...!!


मन में चुभते तीर से   ....
जाने क्यों नीर बन
आँखों से बह जाते हैं ,
यह आवारा बादल ...!!!


प्रवेश  सोनी

Saturday, May 5, 2012

आँसुओ की इबारत
रंग बदल लेती है ,
अनुभूतियो के ताप मै

कोरे निश्चल प्रेम में
निर्मल मन कर जाते आँसू..
प्रिय के आघात
सहर्ष सह जाते ..
गंगा –जम सम पावन हो जाती आँखे

उम्मीद का सूरज ,
जगमगाता अपने आसमां पे
तब उत्सव भी मना लेते आँसू ...

सूखे पत्ते वाली
उदास ऋूतुए,
बंजर कर देती आँखों को ..
सफ़ेद सूखी जमीं पर
सपनो की फसल कहा उग पाती ,
घुटते अंदर ही अंदर ,
लावा बन जाते आँसू

बनी रहे ,
इसलिए सिमटना चाहती
समझ के आँचल में ,
यह बदलती इबारत ....!

नहीं चाहती
अहम और जिद्द के
उथले समंदर में समाना ...!!!



प्रवेश सोनी 
आँसुओ की इबारत
रंग बदल लेती है ,
अनुभूतियो के ताप मै

कोरे निश्चल प्रेम में
निर्मल मन कर जाते आँसू..
प्रिय के आघात
सहर्ष सह जाते ..
गंगा –जम सम पावन हो जाती आँखे

उम्मीद का सूरज ,
जगमगाता अपने आसमां पे
तब उत्सव भी मना लेते आँसू ...

सूखे पत्ते वाली
उदास ऋूतुए,
बंजर कर देती आँखों को ..
सफ़ेद सूखी जमीं पर
सपनो की फसल कहा उग पाती ,
घुटते अंदर ही अंदर ,
लावा बन जाते आँसू

बनी रहे ,
इसलिए सिमटना चाहती
समझ के आँचल में ,
यह बदलती इबारत ....!

नहीं चाहती
अहम और जिद्द के
उथले समंदर में समाना ...!!!






Saturday, April 28, 2012


शख्स
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जिस्म की दीवार मै
कैद शख्स ,
पत्थर सा.....
जन्मता है पीड़ा के गर्भ से
कहता नहीं ,
सुनता है ,वो जो अनसुना है
हैरान ,....खोया खोया सा
सोचता है ,
कोई तो तलाशता होगा उसे ...
किसी मन का
अटका हुआ
ख्याल बन .....
पथरीले मौन में
क्यों हो जाता है
असहनीय शोर ....!
दो बूंद आँख का पानी ,
जड़ता को नमी देकर
उष्मित कर देता है
अहसासों को ....
नीरव से महालय मै
हलाहल पिए कंठ पर हो
जाता अभिषेक
दुग्ध ,और गंगाजल से
शीतल शीतल ...!!!

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Tuesday, March 27, 2012


पंखो में भर परवाज..
उड़ गए पाँखी ,
नापने आकाश ....
नीरव नीड़ ,
टुकुर रहा उनके पदचाप ,
सूनापन फेला सब और ,
पसरा पसरा है मौन ....
वजूद जेसे उसका भी
ले गए अपने साथ ....

जाने केसी आस लिए ,
बाँध बैठा शाखो से बंधन ..
अतीत के झरोखो में ,
बस अब यादों का अवलम्बन...

मन विभोर हुआ ,मन मगन हुआ ,
नन्ही पलकों ने जब खोला था ,
नयनो का चिलमन ...

कानो में अमृत घुल आया था
तुतलाती जिव्हा से चहका था
टूटे फूटे शब्दों का चहकन ....

आँगन में भी दर्प समाया ,
गुंजी थी जब ,
नन्हे कदमो की फुदकन ..

क्षण क्षण खुद से जूझ रहा
खुद ही खुद से पूछ रहा
सांझ ढले सब आते घर ,
लोटेंगे क्या मेरे वो पल ..
सोच यही ,सांझ को टेर रहा
“नीड़ “ निविड़ तम को ठेल रहा .......!!!


प्रवेश सोनी

Friday, March 2, 2012


सपनों का सूरज
=========


वो पल
सर्द होकर
बर्फ से जम गए
यादो की पगडण्डी पर ..
गुजरे थे जो
तुम्हारी और मेरी
गर्म साँसों की राह से ...

पिघलते नहीं
आँखों के बहते
खार से ...

चुभते है
फांस से
असहनीय पीड़ा बन ,
और कभी अचानक से
खिल जाते
मुस्कराहट बन


गाहे बगाहे यह पल
उगा देते है
मेरे हिस्से की धूप लेकर
जीवन में सपनो का सूरज.....!!! ,

प्रवेश सोनी

Tuesday, February 14, 2012


कितना कठिन है
===============


कितना कठिन हे कहना ,
की प्यार हे ....
आसान भी नहीं होता स्वीकारना

तुम्हारी आँखों के ,
दुधिया उजास में जब पढ़ती हू ,
तुम्हारे मन के स्वप्निल शब्द ,
सच मानो ..
खुद को खो देने का अहसास होता है

मौन द्रष्टि ,
कितने सवाल तलब करती हे ..
पर चाह कर भी नहीं होता ,
अधरों पर स्फुटन ..
जेसे शब्दों पर
खींच गई हो कोई रेखा ...

यह भी तो सच हे मगर ,
जब तुम नहीं होते हो पास
खुद से खूब बतियाते हे शब्द ..

जाने क्यों मुमकिन सा नहीं लगता
यह समझ पाना
"ढाई आखर " कहना
जबां को भारी क्यों लगता हे ..
जबकि उन्हें सुन कर मन
कितना हल्का हो जाता है ...!!



प्रवेश सोनी —

Friday, January 20, 2012


जब तुम नहीं होते हो पास ....
तब भी तो होते हो तुम मुझमे ,
सुनते हो मुझे ..
उन शब्दो को समझते भी हो ,
जिन्हें नाकाम रहती हू हमेशा
तुम्हे समझाने में ...
अपने सूक्ष्म कोमलतमज स्पर्श से
स्वीकारते हो उन्हें ...
ढेरो प्रतिकूलताओ के बाद भी ,
गुथा रहता हे राग तुमसे ..
सुकोमल स्पन्दनो ,अहसासों की
कोंपले पल्लवित हो जाती हे ....
जड़े जम जाती हे
नीचे –और नीचे
दुगनी मजबूती से
थामे रहती हे हमारे .
अबोले संबोधनो को ..
और प्रीत वृक्ष हरिया जाता हे
बसंती बयार के साथ ...
लाल गुलाबी ,नीले पीले
प्रसूनो से प्रफुल्लित हो ,
महक जाता जीवन कानन मेरा ..!!!.

प्रवेश सोनी —

Tuesday, January 3, 2012


नव वर्ष ....
नया तो कुछ नहीं ,
दीवार पर टंगे केलेन्डर
के सिवा ..
तुम आते हो ,और गुजर जाते हो अपनी ही रो में ...
हालात बदलने की जद में ,रह जाते है हम जस के तस ...

नए की चाह में ..
नज़रे बिछाती हे
आस की जाजम ..
मगर वो भी कितनी मटमैली हो गई है अब
पीठ से बतियाते पेट ,
जिनमे सुलगती आग
नहीं जलती कई कई
दिनों तक चूल्हों मै .....

मन ही मन करते क्रदन
केसे करे वो तेरा वंदन ..

लू लपटों में जलते ,
ठिठुरते शीत हवाओ में ,
आकाश ओढ़ सोते जिनके तन ,
केसे थिरके वो तेरी मदमाती लय पर ..

रूठी बैठी जाने किस कोने मै
होठो से जिनके हँसी
खुशियों के कर्जे मै
डूबा हो मन जेसे ...
सपनो का अभिशाप जो सहते
निर्मिमेष रीते सुने मन से
आँखों को समझाते रहते
अपने ही काँधे पर तुझको ढोते
केसे वो तेरे स्वागत गीत को गाये

साया विगत का लेकर
ओढ़ कर चोला नव
हमें भरमाते ,
नव वर्ष कभी तो
कुछ तो नया लेकर आते ...!!!


प्रवेश सोनी