कितने
आवारा है यह तेरी सोच के बादल ..
वक्त -बेवक्त छा जाते हैं मन पर ,....
घुसपैठिए की तरह ,
विचारों में लगाते हैं सेंध ....
सोचती हूँ ,
किसी संदूक में बंद कर
ताला जड दूँ ....
पर कैसे ...!!
मन में चुभते तीर से ....
जाने क्यों नीर बन
आँखों से बह जाते हैं ,
यह आवारा बादल ...!!!
प्रवेश सोनी
uske soch ke badal...:) aise hi jakar ke rakhte hain...! bahut khub... bahut pyari.. manbhavan!
ReplyDeletethanks Mukesh ji
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