आँसुओ की इबारत
रंग बदल लेती है ,
अनुभूतियो के ताप मै
कोरे निश्चल प्रेम में
निर्मल मन कर जाते आँसू..
प्रिय के आघात
सहर्ष सह जाते ..
गंगा –जम सम पावन हो जाती आँखे
उम्मीद का सूरज ,
जगमगाता अपने आसमां पे
तब उत्सव भी मना लेते आँसू ...
सूखे पत्ते वाली
उदास ऋूतुए,
बंजर कर देती आँखों को ..
सफ़ेद सूखी जमीं पर
सपनो की फसल कहा उग पाती ,
घुटते अंदर ही अंदर ,
लावा बन जाते आँसू
बनी रहे ,
इसलिए सिमटना चाहती
समझ के आँचल में ,
यह बदलती इबारत ....!
नहीं चाहती
अहम और जिद्द के
उथले समंदर में समाना ...!!!
रंग बदल लेती है ,
अनुभूतियो के ताप मै
कोरे निश्चल प्रेम में
निर्मल मन कर जाते आँसू..
प्रिय के आघात
सहर्ष सह जाते ..
गंगा –जम सम पावन हो जाती आँखे
उम्मीद का सूरज ,
जगमगाता अपने आसमां पे
तब उत्सव भी मना लेते आँसू ...
सूखे पत्ते वाली
उदास ऋूतुए,
बंजर कर देती आँखों को ..
सफ़ेद सूखी जमीं पर
सपनो की फसल कहा उग पाती ,
घुटते अंदर ही अंदर ,
लावा बन जाते आँसू
बनी रहे ,
इसलिए सिमटना चाहती
समझ के आँचल में ,
यह बदलती इबारत ....!
नहीं चाहती
अहम और जिद्द के
उथले समंदर में समाना ...!!!
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