Sunday, March 8, 2015

वीरा
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7-8 वर्ष की रही होगी उसकी उम्र जब वो अपनी माँ के साथ काम पर आती थी ।वीरा नाम सुनते ही कानों को सुहा गया।अपने नन्हे हाथो से बाल्टी में पानी भर -भर के माँ की बरामदा धोने में मदद करती थी ।

धीरे -धीरे वीरा की माँ ने काम पर आना बंद कर दिया और वीरा के नन्हे हाथों ने काम की बागडोर सम्भाल ली ।कई बार पूछा की माँ क्यों नहीं आती तो बड़ी मासूमियत से वीरा कहती आंटीजी में बहुत अच्छे से सफाई करुँगी आपके ।माँ को और घर भी काम करने जाना होता है न।मेरा मन कई बार बालश्रम के अपराध से ग्रसित होता लेकिन ना जाने क्यों वीरा को देखने की आदी हो चुकी आँखे रोज सुबह उसका इन्तजार करती रहती ।उस नन्ही बालिका ने ना जाने कोनसा मोहिनी मन्त्र दिया था मुझे जो मन उससे कोई अनजाना बंधन बाँध बैठा था ।
मौसम बदलते रहे और वर्ष दर वर्ष वीरा मेरे मन में गहरे तक बसती गई।
जब बुखार ने 8-10 दिन तक पीछा नही छोड़ा तो वीरा ही थी जिसने रसोई में चाय पानी का काम भी संभाल लिया था।वीरा समझदार भी बहुत थी कोई काम एक बार समझाने पर आसानी से समझ जाती थी ।बच्चों और पति को भी थोड़ी राहत मिल गई थी अकस्मात सर पर आये काम से ।
जेसे ही बाहर का गेट खुलने की आवाज़ आती कान वीरा के कदमो की आहट पहचान जाते ,और मन खुश हो जाता उसे देख कर ।
सत्यनारायण की कथा की कलावती की तरह वीरा भी दिनों दिन शरीर और उम्र से बड़ी हो रही थी ।एक दिन उसकी बहिन ने आकर कहा की वीरा 8 दिन तक नही आएगी ।1-2 नही पूरे 8 दिन...!! ऐसा क्यों?
बहिन जो खुद एक बच्चे की बालक माँ थी,मुझे इशारो में समझाया कि वो कपडे से हो गई है ।बहुत देर तक दिमाग पर जोर दिया तब असल बात समझ पाई ।
प्रकृति ने स्त्री की शारीरिक बनावट को स्त्रीत्व प्रदान करने केलिए बचपन से ही ऐसी परीक्षाओ से दो दो हाथ होना सिखा दिया था ।
एक बालिका के बचपन की स्वभाविक्ता इस तरह की परीक्षाओं की जटिलता को समझने में ही ख़त्म होने लगती हे ।परिवार की बड़ी स्त्रियाँ जो इन परीक्षाओं में पारंगत हो चुकी हे ,उनके द्वारा दी गई हिदायते मासूम बालिका को समय से पहले बड़ा बना देती हे।
8 दिन बाद शर्म से झुका वीरा का चेहरा नज़र आया ।मेरी आँखे तो उसे देख ऐसे तृप्त हुई जेसे लम्बे विरह के बाद प्रिय के दीदार हुए हो ।
वीरा मेरे सवालो से कतराती हुई चुपचाप काम में लग गई ।जब वह जाने लगी तो मेने प्यार से उसे अपने पास बिठाया।,और गर्म दूध का गिलास उसे पकडा दिया ।जब वो दूध पीने लगी तो मेरे हाथ उसके उलझे बालो को सहलाने लगे ।तब कही जाकर वीरा के चेहरे पर पुरानी सहजता आई ।
समय अपनी रफ़्तार के साथ वीरा और मेरे रिश्ते को प्रगाढ़ता देता रहा ।होली के रंग और दीवाली की थका देने वाली सफाई के साथ तैयारिया ,सब में वीरा का अहम् हिस्सा होता ।काम करते वक़्त उसका गुनगुनाना मेरी थकान को चुटकियों में दूर कर देता।अच्छा लगता था मुझे उसका गाना ।
दीवाली की छुट्टियों में बच्चों के घर आजाने पर काम का दबाव थोडा बड़ जाता ।जिसे वीरा हंस कर कैसे हल्का कर देती थी।वीरा का यह गुण मुझे मोह लेता था ।
देर रात तक रसोई में काम करने बाद सुबह उठी तो देखा घड़ी 8 बजा रही थी ।अरे आज वीरा भी लेट हो गई शायद ।यही सोच कर गैस पर दूध चढ़ा कर अखबार के पन्नें पलटने लगी ।छुट्टियों में बच्चों का सबसे जरुरी काम देर तक सोना होता हे सो मुझे भी ज्यादा चिन्ता नही हुई काम की ।
8से 9 और 9 से 10 बज गए ....अरे आज क्या हो गया ।त्यौहार और उस पर वीरा का बिना बताये छुट्टी कर लेना मुझे थोडा परेशान सा करने लगा ।जेसे तेसे मेने घर का काम किया और दोपहर में वीरा को फोन किया ।
यह मोबाइल वीरा ने अपनी तनख्वा से बचत करके लिया था ।कितना पीछे पड़ी थी मेरे ,आन्टी मुझे मोबाईल दिला दो मुझे गाने सुनना हे ।मेने थोडा डॉट कर कहा था पढ़ने का तो शौक नही तुझे गाने सुनने का तो बड़ा शौक हो गया है ।हँस कर कहती कोनसा मुझे मेम बनाना हे पढ़ कर करना तो झाड़ू पोछा ही हे।
हार कर मेने उसे मोबाईल दिला दिया ।
कई बार नम्बर मिलाने पर भी जब कोई जवाब नही आया तो मन खीझ गया। पहली बार मुझे वीरा पर गुस्सा आया ।त्यौहार ,बच्चों का घर पर आना और वीरा का बिना बताये छुट्टी कर लेना मुझे गुस्सा करने को प्रेरित कर रहे थे ।हालांकि बेटियों ने बराबरी से रसोई में काम संभाल लिया था पर मेरा मन व्यथित था की बच्चे कुछ दिनों को घर आये तो भी उन्हें काम करना पड़ रहा था । दिल और दिमाग यही सोच कर परेशान था की आखिर बिना बताये वीरा ने छुट्टी क्यूँ की ...वो कभी ऐसा करती तो नहीं है ।कही वो बीमार तो नही हो गई ,लेकिन बीमार होती तो फोन तो उठा सकती थी ।कितने विचार दिमाग में और सबमे वीरा ही थी ।
4 दिन बाद वीरा की बहिन घर आई और कहने लगी की वीरा के काम के पैसे दे दो ।
में हैरान सी उसे देखने लगी ।पूछा वीरा काम छोड़ रही हे क्या?जवाब में उसने हां में गर्दन हिलाई ।
क्यों पर..?
सवाल करते वक़्त कई आशंकाओ से गिर गई थी में ।बहिन ने इठला कर कहा की उसकी शादी हो गई ।
क्या !!! में खुद को संभाल नही पाई और धम्म से सोफे पर बैठ गई ।
वीरा की शादी कहाँ ,कैसे ,कब ???
कही तुमने उसे पैसे के लालच में बेच तो नही दिया ।में चिल्ला सी पड़ी उस पर ।पति ने मुझे लगभग डांटते हुए कहा "रश्मि ये क्या कह रही हो ,यह उनका निजी मामला है ।"
नहीं ऐसा नही हो सकता वीरा ने कहा था एक बार मुझे कि हमारी जात में शादी में पैसे मिलते है लड़के की तरफ से ।मेरी बहन को 5000 मिले थे पर आन्टी में शादी नहीं करुँगी ।मेरी बहिन को उसका आदमी बहुत मारता हे और काम के सारे पैसे भी ले लेता हे।वीरा की बहिन के साथ आये अधेड़ को देख कर मुझे सारी बाते सही लगने लगी ।कही वीरा भी किसी ऐसे ही अधेड़ या कोई और .....
नही में तुम्हे कोई पैसे नहीं दूंगी ।साथ आया अधेड़ आदमी खा जाने वाली नज़रो से मुझे घूरने लगा ।मेरे पति ने उन्हें समझाया की वीरा के पैसे वीरा को ही मिलेंगे आप उसे ही भेज देना ।यह सुन कर मन में एक आस बंध गई वीरा से मिलने की ।बहिन चली गई लेकिन मुझे सोचने को कई सारे सवाल दे गई ।मेरा मन वीरा के बारे में सोच सोच कर परेशान हुवा जा रहा था ।खाना पीना सब बेस्वाद सा हो गया ।बेटियों ने यह कह कर मुझे हँसाने की कोशिश की माँ आपकी एक बेटी का ब्याह हो गया खुश हो जाओ पर ये केसी शादी ।मन मानने को तैयार ही नही था ।
लगभग 6 महीने बाद अचानक वीरा घर आई।उसकी आँखे आसुओं से भरी हुई थी ।में भी उसे गले लगा कर सुबक पड़ी ।
क्या हुआ तुझे ,इतनी काली क्यूँ हो गई ,और गाल भी पिचक गए हे आँखे भी गड्ढे में धसी हुई हे ।क्या ससुराल में परेशानी हे तुझे ?जुबान और आँखों से सवालोँ की बौझार कर दी थी मेने ।वीरा बस एक बात बोली ,आन्टी जी मुझे काम पर रख लो प्लीज़ ।अंधे को चाहिए क्या दो आँख।वीरा के जाने के बादमेने कोई काम वाली बाई नहीं रखी थी ।मेरी नज़र में वीरा की जगह कोई नहीं ले पा रही थी या यु कहु की में ही किसी को वो जगह नहीं देना चाहती थी ।वजह कुछ भी रही हो पर अभी तक घर का सारा काम खुद ही कर रही थी ।वेसे बच्चों के चले जाने के बाद हम दोनों का काम था भी कितना ।
हाँ हाँ क्यों नहीं पर बता तो सही बात क्या है ।आन्टी जी मेरा ससुर मुझसे पाँव दबवाता था और मना करने पर सास मुझे बहुत मारती थी ।पति तो नशे में क्या क्या नही करता था ....में छोड़ आई ,अब नही जाउंगी।उनके पैसे दे दूंगी में काम करके पर ससुराल नही जाउंगी ।
वीरा तो बर्तन धोने चली गईथी पर में शादी के सात वचन और पवित्र कहे जाने वाले बंधन की मीमांसा करने में जुट गई ।इस बंधन में बंधे रहना सुखद हे या आज़ाद होना ....।कई सवाल ऐसे होते है जिनके जवाब भी सवाल ही होते हे ।सवालो के भँवर से वीरा की आवाज़ ने ही बाहर निकाला जो बर्तन धोते हुए गुनगुना रही थी "जिंदगी हे सफ़र ये सुहाना यहाँ कल क्या हो किसने जाना ....!!!

प्रवेश सोनी

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