विदा होती बेटीया
छोड़ जाती है देहरी पर
कुनकुनी धुप सी यादें
ओढ़ लेती है बाबुल की चोखट उसे
सुनी सी सर्द दोपहरी में ।
तुलसी बिरवे के दीपक में
बाती बन जाती है बेटिया
सुबह शाम दुआएँ
रोशन होती है आँगन में।
विदा होती बेटिया
माँ के आँचल को दे जाती है नमी
उग आती है छोटी छोटी दूब
मन के हरेपन के लिए ।
विदा होते है उनके साथ
वो सपने बचपन के
गुड्डे गुड्डियों के सलोने जीवन के
ममता देहरी पर खड़ी
देखती है बस
उन सपनो का सच होना
विदा होती बेटिया
ममता का सपना होती है
सच करती है उसे
बेटिया देहरी से विदा होकर ।।
प्रवेश सोनी
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बाती बन जाती है बेटिया
सुबह शाम दुआएँ
रोशन होती है आँगन में।
विदा होती बेटिया
माँ के आँचल को दे जाती है नमी
उग आती है छोटी छोटी दूब
मन के हरेपन के लिए ।
विदा होते है उनके साथ
वो सपने बचपन के
गुड्डे गुड्डियों के सलोने जीवन के
ममता देहरी पर खड़ी
देखती है बस
उन सपनो का सच होना
विदा होती बेटिया
ममता का सपना होती है
सच करती है उसे
बेटिया देहरी से विदा होकर ।।
प्रवेश सोनी
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