Sunday, March 8, 2015

विदा होती बेटिया


विदा होती बेटीया
छोड़ जाती है देहरी पर
कुनकुनी धुप सी यादें
ओढ़ लेती है बाबुल की चोखट उसे
सुनी सी सर्द दोपहरी में ।


तुलसी बिरवे के दीपक में
बाती बन जाती है बेटिया
सुबह शाम दुआएँ
रोशन होती है आँगन में।


विदा होती बेटिया
माँ के आँचल को दे जाती है नमी
उग आती है छोटी छोटी दूब
मन के हरेपन के लिए ।


विदा होते है  उनके साथ
वो सपने बचपन के
गुड्डे गुड्डियों के सलोने जीवन के 


ममता देहरी पर खड़ी
देखती है बस
उन सपनो का सच होना 

विदा होती बेटिया
ममता का सपना होती है
सच करती है उसे
बेटिया देहरी से विदा होकर ।।


प्रवेश सोनी
~~~~~~~

No comments:

Post a Comment