Sunday, March 8, 2015

प्रेम....
कहने से प्रेम नही होता
डूबना होता है
मुस्कराहट के पीछे
अनबहे आसुओं के समंदर मै
ढूँढने होते है
खुशियों के मोती
काले नीले पीले शेवालों के बीच
हां कहा भी कहाँ जाता है
प्रेम
कही तो जाती है दास्ताँ
और वो कहानियाँ
जो होती तो है
पर हो नही पाती

अनकहा प्रेम सदा होता है
आँखों के कोरो मैं बंद
आँसुओ के तटबंधो में
सहेजा हुआ
जेसे सीप में पला मोती
और दर्द के पैरहन में
संवरता सुख ।
प्रेम की पराकाष्ठा है यही
जो ...
दुःख के मौन से गुजर कर
सुख में मुखर हो जाती है ।



प्रवेश सोनी
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