Tuesday, May 22, 2012



साँसों की महक से .
बहका तन ,,,
और सुध खो बैठी रात की रानी ,

छिटक कर डाल से ,
चहका हरसिंगार ...

पूरे चाँद का नशा था रात पर ,

जाग कर थिरकती रही ,
सात स्वरों के साथ ...

लुक छिप कर चोरी चोरी

सितारों मै भी हो रही ठिठोली ...

सारी कायनात नहाई हो

जैसे खुशबु में तेरी ....

हाँ ,तभी तो मेरे गूंगे अहसासों को

शब्द मिले ...

गिरवी जो रख दिए थे मैंने ...

तुम्हारे पास ,
नजरो की सौदेबाजी मै ....!!!



प्रवेश सोनी

Wednesday, May 16, 2012



कितने आवारा है यह तेरी सोच के बादल ..

वक्त -बेवक्त छा जाते हैं मन पर ,....

घुसपैठिए की तरह ,
विचारों में लगाते हैं  सेंध ....

सोचती हूँ ,
किसी संदूक में बंद कर
ताला जड दूँ  ....
पर कैसे  ...!!


मन में चुभते तीर से   ....
जाने क्यों नीर बन
आँखों से बह जाते हैं ,
यह आवारा बादल ...!!!


प्रवेश  सोनी

Saturday, May 5, 2012

आँसुओ की इबारत
रंग बदल लेती है ,
अनुभूतियो के ताप मै

कोरे निश्चल प्रेम में
निर्मल मन कर जाते आँसू..
प्रिय के आघात
सहर्ष सह जाते ..
गंगा –जम सम पावन हो जाती आँखे

उम्मीद का सूरज ,
जगमगाता अपने आसमां पे
तब उत्सव भी मना लेते आँसू ...

सूखे पत्ते वाली
उदास ऋूतुए,
बंजर कर देती आँखों को ..
सफ़ेद सूखी जमीं पर
सपनो की फसल कहा उग पाती ,
घुटते अंदर ही अंदर ,
लावा बन जाते आँसू

बनी रहे ,
इसलिए सिमटना चाहती
समझ के आँचल में ,
यह बदलती इबारत ....!

नहीं चाहती
अहम और जिद्द के
उथले समंदर में समाना ...!!!



प्रवेश सोनी 
आँसुओ की इबारत
रंग बदल लेती है ,
अनुभूतियो के ताप मै

कोरे निश्चल प्रेम में
निर्मल मन कर जाते आँसू..
प्रिय के आघात
सहर्ष सह जाते ..
गंगा –जम सम पावन हो जाती आँखे

उम्मीद का सूरज ,
जगमगाता अपने आसमां पे
तब उत्सव भी मना लेते आँसू ...

सूखे पत्ते वाली
उदास ऋूतुए,
बंजर कर देती आँखों को ..
सफ़ेद सूखी जमीं पर
सपनो की फसल कहा उग पाती ,
घुटते अंदर ही अंदर ,
लावा बन जाते आँसू

बनी रहे ,
इसलिए सिमटना चाहती
समझ के आँचल में ,
यह बदलती इबारत ....!

नहीं चाहती
अहम और जिद्द के
उथले समंदर में समाना ...!!!