साँसों की महक से .
बहका तन ,,,
और सुध खो बैठी रात की रानी ,
छिटक कर डाल से ,
चहका हरसिंगार ...
पूरे चाँद का नशा था रात पर ,
जाग कर थिरकती रही ,
सात स्वरों के साथ ...
लुक छिप कर चोरी चोरी
सितारों मै भी हो रही ठिठोली ...
सारी कायनात नहाई हो
जैसे खुशबु में तेरी ....
हाँ ,तभी तो मेरे गूंगे अहसासों को
शब्द मिले ...
गिरवी जो रख दिए थे मैंने ...
तुम्हारे पास ,
नजरो की सौदेबाजी मै ....!!!
प्रवेश सोनी