Tuesday, January 3, 2012


नव वर्ष ....
नया तो कुछ नहीं ,
दीवार पर टंगे केलेन्डर
के सिवा ..
तुम आते हो ,और गुजर जाते हो अपनी ही रो में ...
हालात बदलने की जद में ,रह जाते है हम जस के तस ...

नए की चाह में ..
नज़रे बिछाती हे
आस की जाजम ..
मगर वो भी कितनी मटमैली हो गई है अब
पीठ से बतियाते पेट ,
जिनमे सुलगती आग
नहीं जलती कई कई
दिनों तक चूल्हों मै .....

मन ही मन करते क्रदन
केसे करे वो तेरा वंदन ..

लू लपटों में जलते ,
ठिठुरते शीत हवाओ में ,
आकाश ओढ़ सोते जिनके तन ,
केसे थिरके वो तेरी मदमाती लय पर ..

रूठी बैठी जाने किस कोने मै
होठो से जिनके हँसी
खुशियों के कर्जे मै
डूबा हो मन जेसे ...
सपनो का अभिशाप जो सहते
निर्मिमेष रीते सुने मन से
आँखों को समझाते रहते
अपने ही काँधे पर तुझको ढोते
केसे वो तेरे स्वागत गीत को गाये

साया विगत का लेकर
ओढ़ कर चोला नव
हमें भरमाते ,
नव वर्ष कभी तो
कुछ तो नया लेकर आते ...!!!


प्रवेश सोनी

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