Friday, January 20, 2012


जब तुम नहीं होते हो पास ....
तब भी तो होते हो तुम मुझमे ,
सुनते हो मुझे ..
उन शब्दो को समझते भी हो ,
जिन्हें नाकाम रहती हू हमेशा
तुम्हे समझाने में ...
अपने सूक्ष्म कोमलतमज स्पर्श से
स्वीकारते हो उन्हें ...
ढेरो प्रतिकूलताओ के बाद भी ,
गुथा रहता हे राग तुमसे ..
सुकोमल स्पन्दनो ,अहसासों की
कोंपले पल्लवित हो जाती हे ....
जड़े जम जाती हे
नीचे –और नीचे
दुगनी मजबूती से
थामे रहती हे हमारे .
अबोले संबोधनो को ..
और प्रीत वृक्ष हरिया जाता हे
बसंती बयार के साथ ...
लाल गुलाबी ,नीले पीले
प्रसूनो से प्रफुल्लित हो ,
महक जाता जीवन कानन मेरा ..!!!.

प्रवेश सोनी —

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