Tuesday, March 27, 2012


पंखो में भर परवाज..
उड़ गए पाँखी ,
नापने आकाश ....
नीरव नीड़ ,
टुकुर रहा उनके पदचाप ,
सूनापन फेला सब और ,
पसरा पसरा है मौन ....
वजूद जेसे उसका भी
ले गए अपने साथ ....

जाने केसी आस लिए ,
बाँध बैठा शाखो से बंधन ..
अतीत के झरोखो में ,
बस अब यादों का अवलम्बन...

मन विभोर हुआ ,मन मगन हुआ ,
नन्ही पलकों ने जब खोला था ,
नयनो का चिलमन ...

कानो में अमृत घुल आया था
तुतलाती जिव्हा से चहका था
टूटे फूटे शब्दों का चहकन ....

आँगन में भी दर्प समाया ,
गुंजी थी जब ,
नन्हे कदमो की फुदकन ..

क्षण क्षण खुद से जूझ रहा
खुद ही खुद से पूछ रहा
सांझ ढले सब आते घर ,
लोटेंगे क्या मेरे वो पल ..
सोच यही ,सांझ को टेर रहा
“नीड़ “ निविड़ तम को ठेल रहा .......!!!


प्रवेश सोनी

3 comments:

  1. "मन विभोर हुआ ,मन मगन हुआ ,
    नन्ही पलकों ने जब खोला था ,
    नयनो का चिलमन ...

    कानो में अमृत घुल आया था
    तुतलाती जिव्हा से चहका था
    टूटे फूटे शब्दों का चहकन ....

    आँगन में भी दर्प समाया ,
    गुंजी थी जब ,
    नन्हे कदमो की फुदकन .." Aik behtreen kavita kee shreshth kavya panktiyan hain.

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  2. "मन विभोर हुआ ,मन मगन हुआ ,
    नन्ही पलकों ने जब खोला था ,
    नयनो का चिलमन ...

    कानो में अमृत घुल आया था
    तुतलाती जिव्हा से चहका था
    टूटे फूटे शब्दों का चहकन ....

    आँगन में भी दर्प समाया ,
    गुंजी थी जब ,
    नन्हे कदमो की फुदकन .."Aik behtreen kavita kee shreshth kavaya panktiyan hain.Badhai.
    Meethesh Nirmohi,Jodhpur.

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