Monday, November 8, 2010


चाहत थी मन की

चाहत थी अपनी
राग की नदी बन बहूं तुम्‍हारी सांसों में
यही तो रही चाह तुम्‍हारी भी,
पर सहेज नहीं पाए
तुम अपने मन का आवेग
स्‍वीकार नहीं पाए
अपने भीतर मेरा निर्बंध बहना,
जो बांधता रहा तुम्‍हें किनारों में,

हर बार सह-बहाव से अलग
तुम निकल जाते रहे किनारा लांघकर
खोजते तुम्‍हें उसी मरुस्थल में
बूंद बूंद विलुप्त होती रही मैं
साथ बहने की मेरी आकांक्षाएं
पंछी की प्यास बनकर रह गईं
राग में डूबे मन ने फिर फिर चाहा
तुम्‍हारी चाहत बने रहना.....आजन्‍म
तुम हार तो सकते हो दीगर हालात से
मगर संवार नहीं सकते
अपना ये बिखरा जीवन-राग

मुझमें भी अब नहीं बची सामर्थ्‍य
धारा के विपरीत बहा ले जाने की
न आंख मूंदकर मानते रहना हर अनुदेश
मैं अनजान नहीं हूं अपनी आंच से
नहीं चाहती‍ कि कोई आकर जलाए तभी जलूं
बुझाए, तब बुझ जाऊं
नहीं चाहती कि पालतू बनकर दुत्कारी जाऊं
और बैठ जाऊं किसी कोने में नि:शब्‍द
मुझे भी चाहिए अपनी पहचान
अपने सपने -
जो कैद है तुम्‍हारी कारा में
चाहिए मुझे अब अपनी पूर्णता
जो फांक न पैदा करे हमारे दिलों में ...
करो तुम्‍हीं फैसला आज
क्या मेरी चाहत गलत है
या तुम्‍हीं नहीं हो साबुत, साथ निभाने को ..???


प्रवेश सोनी

5 comments:

  1. mujhe chahiye apni pahchan ,bahut sundar bhavavyakti badhai

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  2. ► प्रवेश........
    तुम्हारी शुरुआत बेहद उम्दा अंदाज़ में अवतरित हुई है जिसमे समर्पण अपनी पराकाष्ठा को छूने चला है और जिसके लिए यह समर्पण का भाव है वह आपने अहम को तज हकीकी दिनिया से भागता नज़र आता है...... जिसे अपना जुडाव दीखता तो है परन्तु वह उस...े दिखा पाने में वह खुद को कमजोर पाता है...... पल-पल होते पलायन के रूप में उसका अंतर्द्वंद नज़र आता है..... ► परन्तु अनायास ही कविता अपनी मूल धारा को छोड़ किसी आपने आपे में डूब-ऊबती दिखाई जान पड़ने लगती है.... दूसरा भाग भी आपने आप में सुन्दर है परन्तु दो अलग-२ भावों को एक साथ समेटकर एक साथ पिरो देना तभी होना चाहिए जबकि उनका साथ होना आवश्यक हो..... पीड़ा तो है मगर जहाँ आक्रोश होना चाहिए था वहीँ मायूसी प्रखरता से प्रकट होने लगी है.. ► और सबसे बड़ी बात यह कि नायिका अंत में उसी नायक से पूछने लगती है कि ..."तुम्ही बताओ, करो आज फैसला..क्या मेरी चाहत गलत है.." ... यह विरोधाभास समझ से परे है..... ► मेरी समझ में इन्हें दो पृथक-पृथक रचनाएँ होना चाहिए था........


    अगर मौका मिले तो मेरा ब्लॉग भी है भ्रमण के लिए...
    (मेरी लेखनी.. मेरे विचार..)



    .

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  3. जोगिन्दर जी तहे दिल से आभार ...आपकी व्याखा समझ में आई है ,सुधार करने की कोशिश करुँगी ,शुक्रिया

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  4. hi soni ji........kya likhati hai aap............har rachana kuch alag anubhuti deti hai
    yu hi likhati rahie.......ek din aakash ki bulandi ko jaroor chuegi aap.......thanks.

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