स्मृतियों के बीहड़ मै ..
सपनों के पीछे दोड़ते हुए ...
चू- चूहा जाते है कदम
लहू से ...
मन की सतह पर
उभर आता है ,
एक और जख्म ..
बहने को नहीं होती कोई नीली नसे
भीतर ही भीतर सड़ता रहता है
जहरीला मवाद ....
मरता नहीं फिर भी स्वप्न ..
हाँ.. तेरती रहती है परछाइया
आँखों की सतह पर ,
थकन ओढ़ कर
सो जाता है सपना
सोच कर ...
कोई सुबह आकर
जगायेगी जरुर .....!
प्रवेश सोनी
subah ka intzaar achchha laga:)
ReplyDelete