Friday, June 8, 2012

सुरमयी सांझ ने समेटा
रौशनी का कारोबार
अपने आँचल मै .....

रात ने बिछा दी है चादर
आसमाँ पर सितारों की ..

हाँ ...आँखों को इन्तजार है
जीवन के सपने का ,....

तुमने ही तो कहा था
सपनों मै ही तो जिया जाता है
सच्चा जीवन ..
और मै सपने को जीने के लिए
हर सांझ को रात में समेटती रही ...!!

प्रवेश सोनी

2 comments:

  1. Waah Pravesh ji kya khoob likha hai aapne,
    bahut umda antim pakntiyan to ander tak gher ker gayi

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