Monday, July 30, 2012


अजनबी .....
यह गीत जो गुनगुना रही हूँ मै ,
उसकी लय और ताल ,
तेरी ही तो पलकों की थिरकन से आई हैं ...
मेरी और जो उठकर ,
सिखा गई आरोह – अवरोह ....

कितने रंगीन वसन ओढ़ बैठी है
यह जिंदगी ...
और इठला रही है ..
ये रंग तेरी ही तो हँसी ने भरे हैं...
बड़े पक्के रंग हैं यह ,
और भी चटक जाते है दुःख की धूप मै ..

ये संदली सपने ,
तुझसे ही तो आँखों मै आ बसे हैं मेरे
खड़े हो तुम उम्मीद की जमीं पर
चाँद तारे लिए हुए ...

अजनबी..
केसे कहू तुम्हे
बिन तेरे तो साँसे मेरी ,
अजनबी लगने लगी है अब मुझे .....!!

प्रवेश सोनी
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