Friday, April 22, 2011


अनुगूँज
**********

खामोशियो के कोलाहल में
आकंठ डूबे हे ...

कहना भी हे
और सुनना भी ....

पर
चाहत की अनुगूँज
लोट आती हे
दूर बहुत दूर
अहं के पहाडों से टकरा कर ..

गहरी खाइयों में
समा जाती हे ...

अनिश्चित दिशाओ में
भटकता मन
दीन मलिन सा ..

चोटिल हो
रिसता पल – पल.....

सुन लो मेरी
ख़ामोशी की आवाजे ..

गुम न हो जाऊ
इस शोर में ...
टकरा कर पत्थर से
पत्थर ना हो जाऊ कही ...

प्रवेश सोनी

No comments:

Post a Comment