Saturday, October 29, 2011


सोचा आज,
तनहाई लिखू ..
कुछ महक हे ,
खुशबु है ,
लम्हों का
सीलापन भी हे ..
मगर शोर हे बहुत ,
गुम है शब्द जिसमे ,
प्रस्तर से चोट देते ,
सन्नाटे ....
गूंजती हे
अधूरी ख्वाहिशो की चीखे ..
फिर टूट जाती हे तनहाई
टप-टप गिरती
आंसुओ
की बूंदों से .....
और कलम लिख देती हे
कागज पर सिर्फ ,
तेरा नाम ....!!!!


प्रवेश सोनी

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