Saturday, March 5, 2011


बटोही


उजले पैरो से
खुद को समेट कर
धुप
सांझ के
आगोश में
सुनहरी हो गई ,!!

सितारों की
जमीं पर
रात ने
रचे छंद
मधुबन के ..!!

चाँद की
देह में
जल उठे
कई सूरज !!

समंदर को
सुखा देने
वाली प्यास
खड़ी हे
चोखट पर
जलाये नजरो के दीये..!!

गया था जो
इस राह से ,
लोट कर कब ,
आएगा वो बटोही ??

प्रवेश सोनी

2 comments:

  1. प्रवेश जी .. बहुत सुन्दर लिखी है आपने कविता... उम्दा ... बधाई

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  2. बहुत बहुत शुक्रिया डॉ. नूतन जी

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