Thursday, May 26, 2011


आवाज़
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पुकारती
सर्द आवाज़ ,
चीरती हे कुहासे को ..
साये निगलने वाली
धुंध .
चारों और ढाप लेती हे ....

आवाज़ का एक पहलु
भारी वेगवती हवा सा ...,
दूसरा बहुत सूक्ष्म ,
उदास पवन की तरह ,
पवन से अपने अस्तित्व का
सबूत चुराता हुआ ...

शांय – शांय सी गूंज
होती अरण्य में ,
पिघलते शीशे की तरह
उतरती कानो में ......

बार बार झरती होंटो से
पीले पत्तों की तरह
उग आते बोल ,
फिर हरे पत्तों से ..

अपनी ही आवाजों
के पीछे भागती
मृग मरीचिका सी
तुम्हें पुकारती हुई
खो देती हू
चाह के भँवर में
अपनी ही आवाज़ .....!!!


प्रवेश सोनी

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